छिबरामऊ, उत्तर प्रदेश 17-Apr-2025: कभी आपने सोचा है कि एक छोटा सा गांव भी विश्व पटल पर इतिहास रच सकता है? शायद नहीं। लेकिन छिबरामऊ क्षेत्र के लक्षीराम नगला गांव में एक ऐसा काम हो रहा है, जो न केवल इस क्षेत्र का नाम रोशन करेगा, बल्कि पूरे देश को गर्व की अनुभूति कराएगा। यहां बन रहा है विश्व का सबसे ऊंचा 105 फीट का अशोक स्तंभ (ashok sthambh lacchi ram nagla) – एक ऐसा प्रतीक जो भारत के गौरव, शांति और अखंडता की पहचान है।

🛕 क्या है इस स्तंभ की खास बात?
अशोक स्तंभ भारत की विरासत का वो प्रतीक है, जो न सिर्फ इतिहास से जुड़ा है बल्कि हमारे संविधान में भी इसका महत्व है। राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में इसे हर कोई जानता है, लेकिन 105 फीट की ऊंचाई पर खड़ा किया जा रहा यह स्तंभ, न केवल एक वास्तु चमत्कार होगा बल्कि यह इतिहास में दर्ज हो जाएगा।
📍 कहां हो रहा है निर्माण?
यह स्तंभ कन्नौज जिले के छिबरामऊ क्षेत्र के एक छोटे से गांव – लक्षीराम नगला में बन रहा है। सुनने में ये भले ही एक आम गांव लगे, लेकिन यहां के लोग कुछ बड़ा सोचते हैं और उससे भी बड़ा कर दिखाते हैं।
🤝 जन सहयोग से बन रहा है ये ऐतिहासिक स्तंभ
अब आप सोच रहे होंगे कि इतना बड़ा प्रोजेक्ट आखिर कैसे संभव हो रहा है? इसका जवाब है – लोगों का प्रेम, सहयोग और समर्पण।
हाल ही में सौरिख थाना क्षेत्र के शंकरपुर गांव में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें एक बेहद भावुक और प्रेरणादायक घटना सामने आई। डॉ. ब्रजेश शाक्य और शशिप्रभा शाक्य, जो डॉ. धर्मपाल शाक्य चैरीटेबल ट्रस्ट से जुड़े हैं, उन्होंने इस स्तंभ के निर्माण के लिए ₹2,11,563 की राशि का योगदान दिया।
यह कोई मामूली योगदान नहीं था – यह उस सपने में आस्था का प्रतीक था, जिसे गांववाले सच करना चाहते हैं।
🧡 सम्मान, संस्कार और समर्पण का मेल
इस मौके पर जब ओमकार शाक्य – जो सम्राट अशोक चैरीटेबल ट्रस्ट के संरक्षक और जिला पंचायत अध्यक्ष के पति हैं – ने यह धनराशि स्वीकार की, तो उन्होंने भी डॉ. ब्रजेश और शशिप्रभा को सम्मानित किया। उन्हें पंचशील पटिका और प्रतीक चिन्ह देकर सम्मान जताया गया।
यह एक ऐसा दृश्य था, जिसमें भावनाएं, इतिहास और भविष्य एक साथ जुड़ते दिखाई दिए।
🙌 कौन-कौन रहा इस खास मौके पर मौजूद?
कार्यक्रम में कई गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे, जिनमें शामिल थे:
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पूर्व जिला पंचायत सदस्य जीतू शाक्य
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सत्यप्रकाश शाक्य
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अशोक शाक्य
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वेदांश शाक्य
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आदित्य विक्रम सिंह
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शिवप्रताप शाक्य एडवोकेट
इन सभी की उपस्थिति ने यह साबित कर दिया कि जब समाज एकजुट होता है, तो कोई भी सपना अधूरा नहीं रहता।
🏛️ इतिहास खुद को दोहराने वाला है!
अगर आप सोच रहे हैं कि सिर्फ एक स्तंभ ही बन रहा है, तो ठहरिए…
यह सिर्फ पत्थर की इमारत नहीं है, यह भारत के सम्राट अशोक के मूल्यों और विचारों का जीवंत उदाहरण बनने जा रहा है।
सम्राट अशोक ने हिंसा छोड़कर धम्म और करुणा के रास्ते को अपनाया था। यह स्तंभ उन्हीं विचारों को आगे बढ़ाने का प्रयास है।
🌍 छोटे गांव से वैश्विक पहचान तक का सफर
कभी सोचा है कि एक साधारण गांव लक्षीराम नगला, अब दुनिया के नक्शे पर क्यों छाने वाला है?
क्योंकि यह स्तंभ जब बनकर तैयार होगा, तब यह न केवल भारत, बल्कि पूरे विश्व का सबसे ऊंचा अशोक स्तंभ होगा।
105 फीट की ऊंचाई, यानी एक दस मंज़िला इमारत जितना ऊंचा!
सोचिए, ऐसे निर्माण को देखने देश-विदेश से लोग आएंगे, और यह गांव बन जाएगा एक ऐतिहासिक और पर्यटन स्थल।
📸 सच्ची कहानी, सच्चे लोग: एक प्रेरणा
आपको एक प्रेरक उदाहरण बताता हूँ –
शंकरपुर गांव के एक बुजुर्ग रामऔतार जी, जो खुद कभी स्कूल भी नहीं गए, उन्होंने अपनी जीवनभर की जमा पूंजी से 11,000 रुपये इस निर्माण के लिए दान किए।
जब उनसे पूछा गया कि क्यों?
तो उनका जवाब था –
“हम तो बहुत कुछ नहीं कर सकते, लेकिन कुछ तो कर सकते हैं। ये स्तंभ हमारे बच्चों को गर्व देगा।”
🧱 निर्माण की प्रगति और आगे की योजना
निर्माण कार्य दिन-रात चल रहा है।
स्थानीय मज़दूरों और कारीगरों की मदद से अब तक स्तंभ का 70% हिस्सा तैयार हो चुका है।
इसके बाद उसके चारों ओर एक धम्म चक्र पार्क, विचार-दीवार और संग्रहालय बनाने की योजना है, जहाँ सम्राट अशोक के विचारों और इतिहास को चित्रों और कहानियों के माध्यम से दर्शाया जाएगा।
📲 सोशल मीडिया से भी मिल रहा है भरपूर समर्थन
इस ऐतिहासिक स्तंभ की कहानी अब सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रही है।
लोग अपने-अपने स्तर से सहयोग कर रहे हैं।
#AshokStambhChhibramau और #PrideOfIndia जैसे हैशटैग अब ट्रेंड में हैं।
✨ अंत में – यह सिर्फ एक स्तंभ नहीं, यह है पहचान का प्रतीक!
यह अशोक स्तंभ न केवल इतिहास का हिस्सा होगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए गौरव, प्रेरणा और सांस्कृतिक चेतना का केंद्र बनेगा।
लक्षीराम नगला गांव के लोग यह साबित कर रहे हैं कि अगर सोच बड़ी हो, तो साधन अपने आप जुड़ते हैं।
तो दोस्तों,
अगर आप कभी छिबरामऊ की तरफ आएं, तो इस स्तंभ को ज़रूर देखने जाएं।
यह न सिर्फ पत्थर की एक मूरत है, बल्कि हर भारतीय की भावनाओं का जीता-जागता प्रतीक है।
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