Chhibramau 17 December 2024: जीटी रोड हाइवे के किनारे ब्लॉक मुख्यालय के पास वर्ष 1986 में स्पेशल कंपोनेंट प्लान के तहत समाज के कमजोर वर्गों के लिए आठ दुकानों का निर्माण कराया गया। इन दुकानों को ऐसे लोगों को आवंटित किया गया, जिनका उद्देश्य इनका उपयोग रोजगार के लिए करना था। प्रत्येक दुकान पर लगभग 10,000 रुपये की लागत आई थी, लेकिन आज ये दुकानें अपने वास्तविक उद्देश्य से भटक चुकी हैं।

किराए पर चढ़ी दुकानें और अनधिकृत निर्माण
विभागीय जांच में यह सामने आया कि जिन लोगों को ये दुकानें आवंटित की गई थीं, उन्होंने इनमें रोजगार शुरू करने की बजाय, इन्हें किराए पर चढ़ा दिया। इससे भी ज्यादा गंभीर बात यह है कि कई दुकानदारों ने बिना अनुमति के इन दुकानों पर ऊपर तक निर्माण करवा लिया है।
समाजकल्याण विभाग की कार्रवाई
जांच के दौरान समाजकल्याण विभाग ने इन आठ दुकानदारों को नोटिस जारी करते हुए किराया जमा करने और दुकान खाली करने का निर्देश दिया। नोटिस में केवल दो दिन का समय दिया गया था, लेकिन समय सीमा खत्म होने के बावजूद किसी भी प्रकार की कार्रवाई अमल में नहीं लाई गई।
जब इस संबंध में जिला समाजकल्याण अधिकारी एसपी सिंह से बातचीत की गई, तो उन्होंने स्पष्ट किया कि एडीओ समाजकल्याण से अभी जांच रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई है। उन्होंने जांच रिपोर्ट जल्द भेजने के निर्देश दिए हैं ताकि आगे की कार्रवाई सुनिश्चित की जा सके।
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कहानी में छिपा बड़ा सवाल: असल मकसद पर चोट
इन दुकानों का निर्माण उन लोगों को सशक्त बनाने के लिए किया गया था, जो अपने दम पर रोजगार शुरू करना चाहते थे। लेकिन स्थिति इसके विपरीत हो चुकी है। इनका उपयोग व्यवसायिक लाभ के लिए किया जा रहा है, जिससे असली लाभार्थी पीछे छूट गए हैं।
रियल लाइफ उदाहरण: कैसे हो रहा है दुरुपयोग?
ब्लॉक मुख्यालय के पास रहने वाले एक स्थानीय व्यक्ति, रमेश (बदला हुआ नाम), ने बताया कि वह पिछले कई सालों से एक दुकान किराए पर चला रहे हैं। इस दुकान के असली मालिक ने दुकान को उन्हें सालाना 50,000 रुपये में किराए पर दे रखा है। रमेश ने बताया, “दुकान मालिक तो सिर्फ किराया लेता है और मैं सारा काम करता हूं। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि सरकारी योजना के तहत बनी ये दुकानें किराए पर मिलेंगी।”
क्या है समस्या की जड़?
समस्या का मूल कारण उन दुकानदारों की मानसिकता है, जिन्होंने इन्हें किराए पर चढ़ाकर खुद को इस जिम्मेदारी से मुक्त कर लिया। सरकारी तंत्र की धीमी गति और अनुपालन की कमी भी इस समस्या को बढ़ा रही है।
अनधिकृत निर्माण: नियमों की अनदेखी
इन दुकानों पर बिना अनुमति के निर्माण भी एक गंभीर समस्या बन गई है। यह न केवल सरकारी नियमों का उल्लंघन है, बल्कि सड़क किनारे यातायात के लिए भी खतरा पैदा करता है।
समाजकल्याण विभाग की कमजोर पकड़
समाजकल्याण विभाग के प्रयासों के बावजूद कार्रवाई में देरी यह दर्शाती है कि इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। यह भी एक सवाल उठाता है कि क्या विभागीय अधिकारी भी इसमें शामिल हैं?
समाधान की ओर: क्या हो सकता है बेहतर?
- कठोर कार्रवाई:
जिन लोगों ने दुकानों को किराए पर चढ़ाया है या अनधिकृत निर्माण किया है, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। - जांच प्रक्रिया में तेजी:
जांच रिपोर्ट को जल्द से जल्द तैयार कर कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए। - दुकानों का पुनः आवंटन:
दुकानों को ऐसे लोगों को पुनः आवंटित किया जाए, जो इनका उपयोग रोजगार के लिए करें। - नियमित निगरानी:
इन दुकानों की निगरानी के लिए एक समिति बनाई जानी चाहिए, जो यह सुनिश्चित करे कि दुकानें अपने मूल उद्देश्य के लिए उपयोग हो रही हैं।
इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि सरकारी योजनाओं का दुरुपयोग केवल सरकारी तंत्र की समस्या नहीं है, बल्कि समाज की भी जिम्मेदारी बनती है। यदि हर व्यक्ति अपने हिस्से का काम ईमानदारी से करे, तो ऐसी समस्याएं कभी सामने नहीं आएंगी।
हाइवे किनारे बनीं इन दुकानों का मामला न केवल सरकारी योजनाओं की कमजोरियों को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि किस तरह व्यक्तिगत लाभ के लिए सामूहिक हितों की अनदेखी की जा रही है। यह समय है कि समाज और सरकार मिलकर इस समस्या का समाधान ढूंढें ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचा जा सके।