छिबरामऊ (19 मई 2025) – कल की तारीख यानी 18 मई 2025 को छिबरामऊ में जो कुछ हुआ, उसने पूरे शहर को हिला कर रख दिया। एक 10 साल की मासूम बच्ची की जान चली गई, और उसके बाद जो पुलिस और प्रशासन का रवैया सामने आया, वह रूह कंपा देने वाला था।
ये कोई फिल्म की कहानी नहीं है, ये हकीकत है। ये एक ऐसा सच है जिसे पढ़कर और सुनकर आंखें नम हो जाएंगी, और दिल पूछेगा — क्या यही है हमारे सिस्टम का चेहरा?

लाडो को आया बुखार, इलाज के लिए पहुंचाया श्री कृष्णा हॉस्पिटल
शहर के जाने-माने व्यापारी राजेश कुमार गुप्ता उर्फ कुकू भैया की 10 वर्षीय बेटी लाडो को बुखार आया था। बुखार कोई बड़ी बीमारी नहीं मानी जाती, लेकिन जब मां-बाप की आंखों के सामने उनकी नन्ही सी जान तड़प रही हो, तो वह एक-एक पल भारी हो जाता है।
उसी बुखार के इलाज के लिए लाडो को श्री कृष्णा हॉस्पिटल, जीटी रोड, छिबरामऊ ले जाया गया। पर किसी ने सोचा भी नहीं था कि जो अस्पताल इलाज करने के लिए जाना जाता है, वहीं मासूम लाडो की जिंदगी का अंत हो जाएगा।
गलत दवा, गलत इंजेक्शन और फिर मौत का सन्नाटा
अस्पताल में लाडो को जो इंजेक्शन दिया गया, वो उसकी जान ले बैठा। परिजन बार-बार कहते रहे कि दवाई के बाद बच्ची की हालत बिगड़ रही है, लेकिन डॉक्टरों और स्टाफ ने ध्यान नहीं दिया।
कुछ ही देर में लाडो की सांसें थम गईं।
क्या आप सोच सकते हैं कि एक बुखार की वजह से बच्ची की जान चली जाए? नहीं। पर जब लापरवाही सिस्टम में शामिल हो जाए, तो कुछ भी मुमकिन है।
शाम को मिला आश्वासन, फिर शुरू हुआ दबाव

बच्ची की मौत के बाद परिवार, रिश्तेदार और समाज के लोग इंसाफ की उम्मीद में बैठ गए। शाम तक प्रशासन ने आश्वासन दिया कि कार्रवाई होगी, जांच होगी, न्याय मिलेगा। पर ये आश्वासन जल्द ही एक जाल बनकर सामने आया।
लगभग 3 से 5 घंटे तक परिजनों को बस बैठा कर रखा गया, फिर एक-एक कर प्रशासन ने दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वहां से हटो। बाहर निकलो।
छत पर डॉक्टर, नीचे अंधेरे में परिजन
जिस वक्त परिजन नीचे दुख में डूबे हुए थे, उस वक्त डॉक्टर और उनकी टीम अस्पताल की छत पर एसी चलाकर आराम से बैठे थे।
नीचे बैठे लोगों की बिजली बार-बार काटी जा रही थी। पूरी तरह अंधेरा कर दिया गया ताकि किसी तरह परिजन खुद ही चले जाएं।
परिजन खुद अपने मोबाइल की रोशनी से एक-दूसरे को देख रहे थे।
ये कैसी व्यवस्था है जहां मरे हुए परिजन को अंधेरे में बैठाया जाता है और दोषी ठंडे कमरे में आराम करता है?
बिना सील किए मिट्टी गई, गाड़ी में डालकर भगाया गया
जब प्रशासन ने देखा कि लोग टस से मस नहीं हो रहे, तो जबरदस्ती मिट्टी (लाश) उठाकर छोटे हाथी वाहन में डाली गई।
किसी को गाड़ी के पास नहीं जाने दिया गया।
पिता जी खुद दौड़ते हुए चढ़े, तब जाकर अपनी बेटी को अंतिम बार देख पाए।
और यही नहीं — जिस वक्त लाश को गाड़ी में डाला गया, वहां एक अफसर नीली टोपी में मौजूद था। माना जा रहा है कि वह कोई उच्च पदस्थ अधिकारी था। उसने जो बर्बरता दिखाई, वो बयान से बाहर है।
पुलिस का लाठीचार्ज – औरतों-बच्चों को नहीं बख्शा गया
जैसे ही गाड़ी चली, पुलिस ने बर्बरता की हदें पार कर दीं।
औरतों, बच्चों, बुजुर्गों — किसी को नहीं बख्शा गया।
कमर में, पेट में, पीठ पर लाठियां बरसाई गईं।
गालियां तो आम बात थी, पर जो लातें मारी गईं, वो दिल दहला देने वाली थीं।
जिन्होंने अपनी बेटी खो दी, उन्हीं पर लाठियां बरसाई गईं।
जो इंसाफ मांग रहे थे, उन्हीं को चुप करवाया गया।
क्या वाकई यह न्याय है? या एक वर्ग विशेष की पक्षपातपूर्ण कार्रवाई?
इस पूरी घटना के दौरान यह साफ देखने को मिला कि एक खास वर्ग को पूरा प्रशासनिक और राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ था।
परिजन बार-बार कहते रहे कि उनके साथ अन्याय हुआ है।
पर प्रशासन ने एकतरफा कार्रवाई करते हुए सारा दोष परिजनों पर डाल दिया।
क्या इस देश में हर किसी को बराबरी का अधिकार नहीं?
फिर क्यों एक वर्ग को चुप करा दिया गया और दूसरे की पूरी सुरक्षा की गई?
अस्पताल की व्यवस्था – न डॉक्टर का नाम, न पर्ची, न रिकॉर्ड
सबसे बड़ा सवाल ये है कि श्री कृष्णा हॉस्पिटल में न डॉक्टर का नाम बोर्ड पर लिखा है, न डिग्री, न जीएसटी नंबर और न ही मोबाइल नंबर।
दवाई सिर्फ अंदर से मिलती है, बाहर से कुछ नहीं मिलता।
कोई रसीद नहीं, कोई पर्ची नहीं – मतलब अगर कुछ हो जाए तो आप केस भी नहीं कर सकते।
क्या ऐसे अस्पतालों पर सरकार की नजर नहीं है?
लोगों की अपील – ऐसा किसी के साथ न हो
इस घटना ने छिबरामऊ के हर इंसान को झकझोर कर रख दिया है।
परिजन और समाज के लोग कहते हैं कि —
“कल जो हमारे साथ हुआ, वो किसी और के साथ न हो।”
अब लोगों का भरोसा टूट चुका है।
वे कहते हैं —
“जहां हमारी सुनवाई नहीं होती, वहां हमें रहना नहीं चाहिए।”
क्या अब भी चुप रहना सही होगा?
इस लेख को पढ़ते हुए आप भी सोचिए —
अगर लाडो आपकी बेटी होती, तो क्या आप भी चुप बैठते?
अब वक्त आ गया है कि ऐसे अस्पतालों के खिलाफ आवाज उठाई जाए, जहां कोई जवाबदेही नहीं है।
ऐसे अफसरों और पुलिसकर्मियों को सजा मिले, जो इंसाफ मांगने वालों पर लाठियां चलाते हैं।
अंतिम अपील – इस खबर को फैलाइए, ताकि सिस्टम जागे
यह केवल एक बच्ची की मौत नहीं, बल्कि सिस्टम की नाकामी का सबूत है।
इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाएं।
कम से कम हमारे वर्ग को तो पता चले कि हमारे साथ क्या हुआ। 🙏 लाडो की आत्मा को शांति मिले।
और हमें इतना हौसला मिले कि हम अगली लाडो को बचा सकें। 🙏