छिबरामऊ, 29 अप्रैल 2025 — मंगलवार की सुबह छिबरामऊ की गलियाँ कुछ अलग ही रंग में रंगी हुई थीं। हर कोना जय श्री राम और भगवान परशुराम (Parshuram Jayanti Chhibramau 2025) के जयकारों से गूंज रहा था। मौका था भगवान परशुराम की जयंती का, और इस पावन अवसर पर छिबरामऊ के हिंदू भाइयों ने एक अद्भुत, ऐतिहासिक शोभा यात्रा निकाली, जिसने पूरे शहर को एक साथ बाँध दिया।

🚩 शहर की रग-रग में दौड़ी भक्ति की भावना
सुबह करीब 10 बजे जब शहर अभी-अभी जाग रहा था, तब छिबरामऊ के मुख्य बाजार से एक विशाल शोभा यात्रा की शुरुआत हुई। देखते ही देखते इस यात्रा में सैकड़ों नहीं, हजारों लोग जुड़ते चले गए। हाथों में भगवा झंडे, फर्सा और जयकारों की आवाज़ें – यह नज़ारा किसी धार्मिक मेले से कम नहीं था।
हर उम्र का व्यक्ति – चाहे वो छोटा बच्चा हो, कोई बुज़ुर्ग, या युवा – इस यात्रा में पूरी श्रद्धा और जोश के साथ शामिल हुआ। कुछ लोग ढोल-नगाड़ों के साथ ताल से ताल मिलाते नजर आए, तो कुछ पारंपरिक वेशभूषा में भगवान परशुराम की झांकी को आगे बढ़ा रहे थे।
🪓 फर्सा – शक्ति और न्याय का प्रतीक
यात्रा में शामिल लगभग हर व्यक्ति के हाथ में एक प्रतीकात्मक फर्सा था। यह कोई सामान्य हथियार नहीं, बल्कि भगवान परशुराम की पहचान है। फर्सा सिर्फ एक शस्त्र नहीं है, यह अन्याय के विरुद्ध लड़ने की प्रेरणा है।
कई लोगों ने बताया कि उनके लिए फर्सा उठाना उनके भीतर के डर को खत्म करने और धर्म की राह पर अडिग रहने का प्रतीक है। खासकर युवाओं में यह भावना दिखाई दी कि वे भगवान परशुराम के रास्ते पर चलकर समाज में सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं।
🛣️ मुख्य बाजार से सरायसुंदर तक – यात्रा का पूरा मार्ग
शोभा यात्रा मुख्य बाजार से शुरू होकर सरायसुंदर तक निकाली गई। पूरे रास्ते भर सड़कों के दोनों ओर लोग खड़े होकर यात्रा का स्वागत कर रहे थे। किसी ने जल पिलाया (Parshuram Jayanti Chhibramau 2025), तो किसी ने फूल बरसाए।
एक पल के लिए ऐसा लगा मानो पूरा शहर भगवान परशुराम के स्वागत में रुक गया हो।
🙏 छिबरामऊ की विधायक अर्चना पांडे भी रहीं मौजूद
इस विशेष अवसर पर छिबरामऊ की विधायक श्रीमती अर्चना पांडे भी मौजूद रहीं। उन्होंने न केवल यात्रा में भाग लिया, बल्कि झांकी से संबोधित करते हुए भगवान परशुराम की शिक्षाओं पर प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा, “भगवान परशुराम केवल एक योद्धा नहीं थे, वे सनातन संस्कृति के प्रतीक हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि अधर्म और अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाना ही सच्चा धर्म है।”
उनकी बातें सुनकर युवाओं में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ। हर किसी के चेहरे पर गर्व और श्रद्धा साफ दिखाई दे रही थी।
🕉️ भगवान परशुराम – वो योद्धा जिन्होंने सात बार पृथ्वी को क्षत्रियों से मुक्त किया
अब ज़रा भगवान परशुराम की कहानी पर भी एक नज़र डालते हैं – ताकि समझ सकें कि आखिर उनके नाम पर यह जयंती क्यों मनाई जाती है।
भगवान परशुराम, विष्णु जी के छठे अवतार माने जाते हैं। उन्होंने अपने क्रोध, ज्ञान और तपस्या से पृथ्वी को सात बार अन्यायी क्षत्रियों से मुक्त किया। वे आज भी न्याय, वीरता और धर्म के प्रतीक माने जाते हैं।
एक समय था जब अत्याचारी राजाओं ने जनता पर ज़ुल्म करना शुरू कर दिया था। तब भगवान परशुराम ने अकेले ही अपने फर्से के बल पर इन अत्याचारियों का अंत किया और धर्म की स्थापना की।
🧒 यात्रा में बच्चों और युवाओं का बढ़ता रुझान
इस यात्रा की सबसे ख़ास बात थी – बच्चों और युवाओं की भारी भागीदारी। बहुत सारे छोटे बच्चे परशुराम की वेशभूषा में सजे हुए थे। एक नन्हा बालक जिसका नाम आरव था, ने कहा, “मुझे भगवान परशुराम की तरह बनना है जो हमेशा सही के लिए लड़ते हैं।”
सोचिए, जब एक 7 साल का बच्चा यह सोच रखता है, तो हमारा भविष्य कितना उज्ज्वल हो सकता है।
🎤 एकता का संदेश – कोई भेदभाव नहीं, सिर्फ भाईचारा
इस शोभा यात्रा में जो सबसे बड़ी बात उभर कर आई, वो थी एकता। कोई जाति-पांति का भेद नहीं, कोई ऊँच-नीच नहीं – सब एक साथ, एक रंग में रंगे हुए।
एक वृद्ध व्यक्ति ने कहा, “भगवान परशुराम हमें यही सिखाते हैं कि धर्म से बड़ा कोई नहीं होता। जब तक हम एक नहीं होंगे, हम कभी अन्याय का सामना नहीं कर पाएंगे।”
📸 सोशल मीडिया पर भी छाया रहा माहौल
शोभा यात्रा की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर छा गए। फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सऐप ग्रुप्स में छिबरामऊ की यह यात्रा चर्चा का विषय बन गई। कई लोगों ने इसे “Chhibramau शहर का बड़ा आयोजन” करार दिया।
एक सीख जो हमें परशुराम जयंती से लेनी चाहिए
परशुराम जयंती सिर्फ एक परंपरा नहीं है, यह एक प्रेरणा है। भगवान परशुराम ने हमें सिखाया कि जब भी अधर्म बढ़े, जब भी समाज में अन्याय हो, तो चुप नहीं रहना चाहिए।
और सबसे अहम बात – धर्म सिर्फ पूजा-पाठ नहीं है, धर्म है दूसरों के लिए खड़ा होना, अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाना।
छिबरामऊ की ये शोभा यात्रा सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं थी, यह एक सामाजिक चेतना थी। यह दर्शाती है कि आज भी छोटे शहरों में परंपराएं जीवित हैं, और वहां का युवा अपनी जड़ों से जुड़ा हुआ है।
तो अगली बार जब आप सोचें कि छोटे शहरों में कुछ नहीं होता – तो बस छिबरामऊ की इस शोभा यात्रा को याद करिए। क्योंकि जहां फर्सा उठता है, वहां बदलाव की शुरुआत होती है।
क्या आपने भी इस शोभा यात्रा में भाग लिया? या आपके शहर में परशुराम जयंती कैसे मनाई गई (Parshuram Jayanti Chhibramau 2025)? हमें ज़रूर बताइए।
जय श्री राम! जय परशुराम!