छिबरामऊ, 17 अप्रैल 2025: छिबरामऊ का नाम सुनते ही एक शांत कस्बे की तस्वीर सामने आती है, जहां आम जनजीवन सरल और सीधा है। लेकिन जब यहीं के मुख्य डाकघर से एक ऐसा मामला सामने आता है, जो भरोसे को हिला कर रख देता है, तो बात सिर्फ खबर नहीं रहती — वो बन जाती है एक चेतावनी।

नगर के मुख्य डाकघर में इन दिनों आधार कार्ड बनवाने वालों की लंबी कतारें आम बात हो गई हैं। लोग सुबह-सुबह अपने जरूरी दस्तावेज लेकर पहुंचते हैं, उम्मीद होती है कि काम आराम से हो जाएगा। लेकिन इस बार मामला सिर्फ आधार कार्ड तक सीमित नहीं रहा।
🎭 कहानी की शुरुआत: एक आम पिता की असामान्य परेशानी
मोहल्ला सराफान निवासी, बार एसोसिएशन के पूर्व उपाध्यक्ष विनीत कुमार चतुर्वेदी एक जिम्मेदार नागरिक और पेशे से वकील हैं। वे अपने बच्चों का आधार कार्ड बनवाने मुख्य डाकघर पहुंचे। लेकिन उन्हें वहां एक ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी।
जैसे ही वे आधार कार्ड बनवाने के काउंटर पर पहुंचे, वहां मौजूद कर्मचारी सौरभ यादव (Post office Chhibramau Saurabh Yadav) ने उन्हें सीधे-सीधे 36 हजार रुपये का पोस्टल लाइफ इंश्योरेंस (PLI) कराने का सुझाव नहीं, बल्कि दबाव डाला।
💰 बीमा नहीं तो सुविधा शुल्क दो!
विनीत जी ने जब बीमा लेने से मना किया, तो कहानी ने और अजीब मोड़ ले लिया। सौरभ यादव ने उनसे 5,000 रुपये बतौर सुविधा शुल्क मांगे! और जब उन्होंने यह राशि देने से भी इनकार कर दिया, तो उनके बच्चों का आधार कार्ड बनाने से इंकार कर दिया गया।
अब आप खुद सोचिए — एक सरकारी सेवा, जो हर नागरिक का अधिकार है, उसे पाने के लिए कोई रिश्वत मांगे, वो भी खुलेआम?
विनीत चतुर्वेदी जी ने तुरंत इस पूरे मामले की शिकायत उपजिलाधिकारी (SDM) से की। जब वे पोस्ट ऑफिस के इंचार्ज से मिले, तो वहां भी उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने एक लिखित शिकायती पत्र देकर सख्त कार्रवाई की मांग की।
🧾 क्या कहते हैं अधिकारी?
जब इस बारे में उप पोस्ट मास्टर हंसराज प्रजापति से पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “हमारे पास इस प्रकार की कोई शिकायत नहीं आई है। हम पीएलआई योजना की जानकारी जरूर लोगों को देते हैं, लेकिन किसी पर दबाव नहीं बनाया जाता।”
हालांकि जैसे ही उन्हें इस पूरे घटनाक्रम की जानकारी हुई, उन्होंने खुद आधार कार्ड बनाने वाले सौरभ यादव से इस पर बात की।
🗣️ सौरभ यादव का पक्ष
सौरभ यादव ने भी अपनी सफाई पेश की। उनका कहना था कि उन्होंने सिर्फ पोस्टल लाइफ इंश्योरेंस की जानकारी दी थी, जबरदस्ती नहीं की। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों के आधार कार्ड के लिए आवश्यक दस्तावेज पूरा नहीं था, इसलिए उन्हें कार्ड बनाने से रोका गया।
अब सवाल उठता है — अगर कागज पूरे नहीं थे, तो पहले बीमा की बात क्यों आई? और अगर दस्तावेज अधूरे थे, तो 5,000 रुपये सुविधा शुल्क क्यों मांगा गया?
🔍 एसडीएम ने दिए जांच के आदेश
इस पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए एसडीएम ज्ञानेंद्र कुमार द्विवेदी ने डाक अधीक्षक को इस मामले की जांच कर कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। उन्होंने कहा कि किसी भी सरकारी सेवा में भ्रष्टाचार या जबरदस्ती को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
📌 असल मुद्दा क्या है?
इस खबर में कई परतें हैं:
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जनसेवा में भ्रष्टाचार: आम जनता को उनका अधिकार देने से पहले उनसे पैसे मांगे जा रहे हैं।
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बीमा योजनाओं का दुरुपयोग: सरकारी योजनाओं को जबरन बेचने की कोशिश की जा रही है।
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सिस्टम में जवाबदेही की कमी: पोस्ट ऑफिस इंचार्ज और उपपोस्ट मास्टर का रवैया साफ करता है कि अंदरूनी निगरानी कमजोर है।
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आवाज़ उठाने की जरूरत: अगर विनीत चतुर्वेदी जैसे लोग आवाज़ न उठाते, तो यह मामला दबा ही रह जाता।
📚 एक सबक – “चुप मत रहो”
ये खबर सिर्फ एक घटना नहीं, हर उस आम आदमी की कहानी है जो सरकारी कार्यालयों में अपने काम को लेकर चक्कर काटता है। अगर कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति, जो कानून जानता है, उसके साथ यह हो सकता है, तो एक आम ग्रामीण क्या करेगा?
यह घटना हमें यह भी सिखाती है कि अगर हम गलत के खिलाफ आवाज़ उठाएं, तो व्यवस्था को झकझोरा जा सकता है।
अब क्या?
इस खबर के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि जांच में क्या निकलकर आता है और क्या दोषी कर्मचारियों पर कोई सख्त कार्रवाई होती है या नहीं। छिबरामऊ के लोग अब उम्मीद लगाए बैठे हैं कि उन्हें उनके अधिकार बिना किसी डर और दबाव के मिलेंगे।
पाठकों से अपील
अगर आपके साथ भी कभी किसी सरकारी कार्यालय में ऐसा व्यवहार हुआ हो, तो उसे चुपचाप सहने की बजाय, उसके खिलाफ आवाज़ उठाएं। शिकायत करें, दस्तावेज रखें, और अपने हक की लड़ाई लड़ें।
आपके हक की रक्षा आप ही कर सकते हैं — और अगर आप एक कदम आगे बढ़ाएंगे, तो शायद सिस्टम भी सुधरने लगेगा।
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